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कृष्ण जन्माष्टमी : जीवन का संतुलन और आधुनिक समाज की आवश्यकता


नवलगढ समाचार । विशेष

आज हम कृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हैं। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन जीने की वह कला सिखाता है जो हर युग में प्रासंगिक रही है। श्रीकृष्ण का जीवन केवल कथा नहीं, बल्कि एक गहन दर्शन है। उनके बचपन की नटखट लीलाएँ हों या गीता के गंभीर उपदेश—हर जगह जीवन का संतुलन और सकारात्मक सोच स्पष्ट दिखाई देती है।

आधुनिक जीवन और श्रीकृष्ण का संदेश

आज का समाज तेज़ी से बदल रहा है। तकनीक ने जीवन को सुविधाजनक बनाया है, पर इसके साथ ही तनाव, असंतुलित दिनचर्या और प्रतिस्पर्धा ने जीवन से शांति छीन ली है। लोग धन और उपलब्धियों की दौड़ में इतने उलझ जाते हैं कि तन, मन और आत्मा के स्वास्थ्य की उपेक्षा करने लगते हैं।
यहीं पर श्रीकृष्ण का संदेश हमें मार्गदर्शन देता है।

गीता में कहा गया है— “योगस्थः कुरु कर्माणि” — अर्थात संतुलन के साथ अपने कर्म करो। यही शिक्षा आधुनिक जीवन की चुनौतियों के बीच सबसे महत्वपूर्ण है।

स्वास्थ्य और आहार का संतुलन

श्रीकृष्ण ने अपने जीवन से यह सिखाया कि चाहे युद्धभूमि हो या गोकुल की गलियाँ, धैर्य और संतुलन ही सफलता की कुंजी है।
आज जरूरत है कि हम अपनी जीवनशैली में संतुलन लाएँ—

  • भोजन में सात्त्विकता और संतुलन अपनाएँ,
  • रोज़मर्रा की व्यस्तता में व्यायाम और योग को स्थान दें,
  • और हर परिस्थिति में सकारात्मक सोच को बनाए रखें।

तनाव और अवसाद जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं क्योंकि हम शरीर और मन की देखभाल को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। जबकि श्रीकृष्ण का जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि जब मन प्रसन्न और आत्मा संतुलित हो, तब ही जीवन सार्थक बनता है।

इस जन्माष्टमी का संकल्प

इस जन्माष्टमी पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि—

  • हम अपने शरीर की देखभाल करेंगे,
  • अपने मन को प्रसन्न और शांत रखेंगे,
  • और अपनी आत्मा को सदैव सकारात्मकता से पुष्ट करेंगे।

कृष्ण केवल धर्म और आस्था के प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन के सबसे बड़े शिक्षक भी हैं। यदि हम उनके बताए मार्ग पर चलें तो समाज में भी सद्भाव, सहयोग और संतुलन स्थापित होगा।

आइए, इस जन्माष्टमी पर न केवल पूजा और उत्सव करें, बल्कि जीवन में संतुलन और सकारात्मकता को अपनाकर श्रीकृष्ण के सच्चे अनुयायी बनें।

जय श्रीकृष्ण!


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